संतान प्राप्ति एवं संतान को सुखी रखने के लिए रखे अहोई अष्टमी व्रत

संतान प्राप्ति एवं संतान को सुखी रखने के लिए रखे अहोई अष्टमी व्रत

संतान प्राप्ति एवं संतान को सुखी रखने के लिए करवाचौथ के बाद अहोई अष्टमी व्रत रखा जाता है इस वर्ष अहोई अष्टमी 24 अक्टूबर दिन गुरुवार को है बताया जाता है “जो राधा कुंड नहाई, पुत्र रतन धन पाई”श्री वृषभानु कुँवरि जु, अष्ट सखिन के झुंड डगर बुहारत सांवरौ, जय जय राधाकुंड।।

अहोई अष्टमी के दिन निर्जला व्रत रखकर पति पत्नी निशीथ काल मे श्री राधा कुंड में डुबकी लगाते हैं इसके साथ ही एक कोई फल पति पत्नी को छोड़ने का संकल्प लेना होता है इस दिन पेठे का फल चढ़ाया जाता है स्नान के बाद सुहागिनें अपने केश खोलकर रखती हैं और राधा की भक्ति कर आशीर्वाद प्राप्त कर पुत्र रत्न प्राप्ति की भागीदार बनती हैं मन में पुत्र रत्न की आस, ऊपर से राधा जी पर अटूट विश्वास, कि अबकी बार राधा कुंड में स्नान करने से मेरी गोद जरूर भरेगी इसी आस्था के साथ कार्तिक मास की अष्टमी (अहोई अष्टमी) को राधा कुंड में हजारों दंपति स्नान कर पुत्र रत्न प्राप्ति की कामना करते है जो राधा कुंड नहाई, पुत्र रतन जन जाई ऐसा ही इतिहास रहा है, अहोई अष्टमी पर होने वाले महा स्नान का कार्तिक मास की अष्टमी के दिन राधा कुंड में स्नान करने वाली सुहागिनों को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है एवं उनकी संतान सुखी और संपन्न रहती है
राधाकुंड पर देश से नहीं अपितु विदेश से भी श्रद्धालु आते हैं मान्यता है कि कार्तिक मास की अष्टमी को वे दंपति जिन्हें पुत्र प्राप्ति नहीं हुई है वे निर्जला व्रत रखते हैं और अष्टमी की रात्रि को पुष्य नक्षत्र में रात्रि 12 बजे से राधा कुंड में स्नान करते हैं मान्यता है कि आज भी पुण्य नक्षत्र में राधा जी और कृष्ण रात्रि 12 बजे तक राधाकुंड में अष्ट सखियों संग महारास करते हैं इसके बाद पुण्य नक्षत्र शुरू होते ही वहां स्नान कर भक्ति करने वालों को दोनों आशीर्वाद देते हैं और पुत्र की प्राप्ति होती है पौराणिक मान्यता है कि राधा जी ने उक्त कुंड को अपने कंगन से खोदा था इसलिए इसे कंगन कुंड भी कहा जाता है कथानकों के अनुसार श्रीकृष्ण गोवर्धन में गौचारण लीला करते थे इसी दौरान अरिष्टासुर ने गाय के बछड़े का रूप धर के  श्रीकृष्ण पर हमला किया इस पर श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया तब राधारानी ने श्रीकृष्ण को बताया कि उन्होंने अरिष्टासुर का वध तब किया जब वह गौवंश के रूप में था इसलिए उन्हें गौवंश हत्या का पाप लगा है इस पाप से मुक्ति के उपाय के रूप में श्रीकृष्ण अपनी बांसुुरी से एक कुंड श्याम कुंड खोदा और उसमें स्नान किया इस पर राधा जी ने श्याम कुंड के बगल में अपने कंगन से एक और कुंड राधा कुंड खोदा और उसमें स्नान किया स्नान करने के बाद राधा जी और श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था महारास में दोनों कई दिन रात तक लगातार रास रचाते सुधबुध खो बैठे इसका उल्लेख ब्रह्म पुराण व गर्ग संहिता के गिर्राज खंड में मिलता है इस विशेष तिथि पर पुत्र प्राप्ति को लेकर दंपति राधाकुंड में स्नान कर राधा जी से आशीर्वाद मांगते हैं

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